Mata Baglamukhi kavach in Sanskrit ( माता बगलामुखी कवच )
Mata Baglamukhi maintains the eighth significant position among all the ten Dus Mahavidya's. Bagalamukhi" is derived from "valga" original Sanskrit word and "mukha", meaning "face". Maa Bagalamukhi wears yellow dress and has a golden complexion marked by peace and prosperity. Mata Bagalamukhi is also called Pitambara devi or Brahmastra Roopini seated on the golden throne in the middle of an ocean of nectar full of yellow lotuses. A crescent moon as an ornament at her head makes her look more attractive. Goddess Baglamukhi means one whose face has the power to conquer or control. Baglamukhi kavach is the ultimate weapon to destroy all the enemies of universe. Baglamukhi is the super power which paralyses the evil forces. Protection is the inherited motive for all the destructive actions of Maa Baglamukhi.
The Baglamukhi Kavach paath will be very beneficial in many ways as this can remove the evil spirits from the life of humans and will help them to live a peaceful life.The problems in the path of success are also removed and the success is achieved. Enemies can't stand in front of person who chants the Kavach daily. Regular chanting of kavacha will also help to win in court case and Interviews. Victory all over the enemies. Revamp personal life and relationships.
माता बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं। इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं। ये स्तम्भन की देवी हैं। सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती.शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है। बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए । व्यष्ठि रूप में शत्रुओ को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली तथा समिष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। पिताम्बराविद्या के नाम विख्यात बगलामुखी की साधना प्रायः शत्रुभय से मुक्ति और वाकसिद्धि के लिये की जाती है। इनकी उपासना में हल्दी की माला पीले फूल और पीले वस्त्रो का विधान है।
माता बगलामुखी कवच
पाठ शिरो मेंपातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातुललाटकम । सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ।। 1
श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् । पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।। 2
देहिद्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम । कण्ठदेशं मन: पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।। 3
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम । मायायुक्ता तथा स्वाहा, हृदयं पातु सर्वदा ।। 4
अष्टाधिक चत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी । रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम ।। 5
ब्रह्मास्त्राख्यो मनु: पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु । मन्त्रराज: सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।। 6
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलावतु । मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम् ।। 7
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् । वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णा: परमेश्वरी ।। 8
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी । स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ।। 9
जिह्वावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च । पादोध्र्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।। 10
विनाशयपदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे । ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।। 11
सर्वांगं प्रणव: पातु स्वाहा रोमाणि मेवतु । ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।। 12
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेवतु । कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।। 13
वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेवतु । ऊर्ध्व पातु महालक्ष्मी: पाताले शारदावतु ।। 14
इत्यष्टौ शक्तय: पान्तु सायुधाश्च सवाहना: । राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायक: ।। 15
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु । द्विभुजा रक्तवसना: सर्वाभरणभूषिता: ।। 16
योगिन्य: सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम । इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।। 17