Shri Kamal Netra stotra in Sanskrit ( श्री कमलनेत्र स्तोत्रं )
Shri Kamal netra Stotra is dedicated to Shri Krishna. Shri Krishna, one of the most widely revered and most popular of all Indian divinities, worshipped as the eighth incarnation (avatar, or avatara) of the Hindu god Vishnu and also as a supreme god in his own right. Kamal means Lotus and Netra means Eyes. Shri Krishna is described as the "Lotus-Eyed One," referring to his divine beauty.
श्री कमल् नेत्र स्तोत्र
श्री कमलनेत्र कटि पीताम्बर, अधर मुरली गिरधरम् ।
मुकुट कुण्डल कर लकुटिया, सांवरे राधे वरम् ।।
कूल यमुना धेनु आगे, सकल गोपी मन हरम् ।
पीत वस्त्र गरुड़ वाहन, चरण सुख नित सागरम् ।।
करत कोलि किलोल निशदिन, कुंज भवन उजागरम् ।
अजर अमर अडोल निश्चल, पुरुषोत्तम अपरा परम् ।।
दीनानाथ दयाल गिरिधर, कंस हिरणाकुश हरणम् ।
गल फूल भाल विशाल लोचन, अधिक सुन्दर केशवम् ।।
बंशीधर वासुदेव छइया, बलि दल्यो श्री वामनम् ।
जल डूबते गज राख लीनों, लंक छेघो रावनम् ।।
सप्त दीप नवखण्ड चौदह, भवन कीनों एक पदम् ।
द्रौपदी की लाज राखी, कहां लौ उपमा करम् ।।
दीनानाथ दयाल पूरण, करुणामय करुणाकरम् ।
कविदत्त दास विलास निशदिन, नाम जप नित नागरम् ।।
प्रथम गुरु के चरण बन्दौं, यस्य झान् प्रकाशितम् ।
आदि विष्णु जुगादि ब्रह्मा, सेविते शिव शंकरम् ।।
श्रीकृष्ण केशव कृष्ण केशव, कृष्ण यदुपति केशवम् ।
श्रीराम रघुवर, राम रघुवर, राम रघुवर राघवम् ।।
श्रीराम कृष्ण गोविन्द माधव, वासुदेव श्री वामनम् ।
मच्छ-कच्छ वराह नरसिंह, पाहि रघुपति पावनम् ।।
मथुरा मे केशवराय विराजे, गोकुल बाल मुकुन्द जी ।
श्री वृन्दावन मे मदन मोहन, गोपीनाथ गोविन्द जी ।।
धन्य मथुरा धन्य गोकुल, जहां श्री पति अवतरे ।
धन्य यमुना नीर निर्मल, ग्वाल बाल सखा वरे ।।
नवनीत नागर करत निरन्तर, शिव विरंचि मन मोहितम् ।
कालिन्दी तट करत क्रीडा, बाल अर्भ्दुत सुन्दरम् ।।
ग्वाल बाल सब सखा विराजे, संग राधे भामिनी ।
बंशी वट तट निकट यमुना, मुरली की टेर सुहावनी ।।
भज राघवेश रघुवंश उत्तम, परम राजकुमार जी ।
सीता के पति भक्तन क गति, जगत प्राण आधार जी ।।
जनक राजा पनक राखी, धनुष बाण चढ़ावही ।
सति सीता नाम जाके, श्री रामचन्द्र प्रणामही ।।
जन्म मथुरा खेल गोकुल, नन्द के हृदि नन्दनम् ।
बाल लीला पतित पावन, देवकी वसुदेवकम् ।।
श्री कृष्ण कलिमल हरण जाके, जो भजे हरिचरण को ।
भक्ति अपनी देव माधव, भवसागर के तरण को ।।
जगन्नाथ जगदीश स्वामी, श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ।
द्वारिका के नाथ श्री पति, केशवं प्रणमाम्यहम् ।।
श्रीकृष्ण अष्टपदपढ़त निशदिन, विष्णुलोक सगच्छतम् ।
श्रीगुरु रामानन्द अवतार स्वामी, कविदत्त दास समाप्तम् ।।