Shri Hanuman sathika ( श्री हनुमान साठिका )
Shri Hanuman Sathika is a powerful hymn in praise of Lord Hanuman. It has a total of sixty 'Chopais' hence the name 'Sathika'. This was composed by Great devotee saint poet Shri Tulsidas Ji. Recitation of this removes diseases, debts, enemies and obstacles in the path of success and brings happiness in one's life. Shri Hanuman Sathika can be started from any Tuesday. One should chant this for 60 days unbroken to get above mentioned benefits. One should rise early in morning, do proper pooja of Shri Rama and then Shri hanumana, after this one should start chanting Shri Hanuman Sathika.
श्री हनुमान साठिका का प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को सारी जिंदगी किसी भी संकट से सामना नहीं करना पड़ता । उसकी सभी कठिनाईयाँ एवं बाधाएँ श्री हनुमान जी आने के पहले हीं दूर कर देते हैं। हर प्रकार के रोग दूर हो जाती हैं तथा कोई भी शत्रु उस मनुष्य के सामने नहीं टिक पाता । श्री हनुमान साठिका का पाठ विधिपूर्वक साठ दिनों तक करने चाहिये । इसे किसी भी मंगलवार से शुरु कर सकते हैं । सुबह उठकर शुद्ध हो लें । उसके बाद विधिपूर्वक श्रीराम जी का पूजन कर ,हनुमान जी का पूजन करें । तत्पश्चात् पाठ आरम्भ करें ।
श्री हनुमान साठिका
- जय-जय-जय हनुमान अडंगी | महावीर विक्रम बजरंगी ||
- जय कपिश जय पवन कुमारा | जय जग बंदन सील अगारा ||
- जय आदित्य अमर अबिकारी | अरि मरदन जय-जय गिरिधारी ||
- अंजनी उदर जन्म तुम लीन्हा | जय जयकार देवतन कीन्हा ||
- बाजे दुन्दुभि गगन गंभीरा | सुर मन हर्ष असुर मं पीरा ||
- कपि के डर गढ़ लंक सकानी | छूटे बंध देवतन जानी ||
- ऋषि समूह निकट चलि आये | पवन-तनय के पद सिर नाये ||
- बार-बार स्तुति करी नाना | निर्मल नाम धरा हनुमाना ||
- सकल ऋषिन मिली अस मत ठाना | दीन्ह बताय लाल फल खाना ||
- सुनत वचन कपि मन हर्षाना | रवि रथ उदय लाल फल जाना ||
- रथ समेत कपि कीन्ह आहारा | सूर्य बिना भये अति अंधियारा ||
- विनय तुम्हार करै अकुलाना | तब कपिस की अस्तुति ठाना ||
- सकल लोक वृतांत सुनावा | चतुरानन तब रवि उगिलावा ||
- कहा बहोरी सुनहु बलसीला | रामचंद्र करिहैं बहु लीला ||
- तब तुम उनकर करेहू सहाई | अबहीं बसहु कानन में जाई ||
- अस कही विधि निज लोक सिधारा | मिले सखा संग पवन कुमारा ||
- खेलै खेल महा तरु तोरें | ढेर करें बहु पर्वत फोरें ||
- जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई | गिरि समेत पातालहि जाई ||
- कपि सुग्रीव बालि की त्रासा | निरखति रहे राम मागु आसा ||
- मिले राम तहं पवन कुमारा | अति आनंद सप्रेम दुलारा ||
- मनि मुंदरी रघुपति सों पाई | सीता खोज चले सिरु नाई ||
- सतयोजन जलनिधि विस्तारा | अगम-अपार देवतन हारा ||
- जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा | लांघि गये कपि कही जगदीशा ||
- सीता-चरण सीस तिन्ह नाये | अजर-अमर के आसिस पाये ||
- रहे दनुज उपवन रखवारी | एक से एक महाभट भारी ||
- तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा | दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ||
- सिया बोध दै पुनि फिर आये | रामचंद्र के पद सिर नाये ||
- मेरु उपारि आप छीन माहीं | बाँधे सेतु निमिष इक मांहीं ||
- लक्ष्मण-शक्ति लागी उर जबहीं | राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ||
- भवन समेत सुषेन लै आये | तुरत सजीवन को पुनि धाय ||
- मग महं कालनेमि कहं मारा | अमित सुभट निसि-चर संहारा ||
- आनि संजीवन गिरि समेता | धरि दिन्हौ जहं कृपा निकेता ||
- फन पति केर सोक हरि लीन्हा | वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ||
- अहिरावन हरि अनुज समेता | लै गयो तहां पाताल निकेता ||
- जहाँ रहे देवि अस्थाना | दीन चहै बलि कढी कृपाना ||
- पवन तनय प्रभु किन गुहारी | कटक समेत निसाचर मारी ||
- रीछ किसपति सबै बहोरी | राम-लखन किने यक ठोरी ||
- सब देवतन की बन्दी छुडाये | सो किरति मुनि नारद गाये ||
- अछय कुमार दनुज बलवाना | काल केतु कहं सब जग जाना ||
- कुम्भकरण रावण का भाई | ताहि निपात कीन्ह कपिराई ||
- मेघनाद पर शक्ति मारा | पवन तनय तब सो बरियारा ||
- रहा तनय नारान्तक जाना | पल में हते ताहि हनुमाना ||
- जहं लगि भान दनुज कर पावा | पवन-तनय सब मारि नसावा ||
- जय मारुतसुत जय अनुकूला | नाम कृसानु सोक तुला ||
- जहं जीवन के संकट होई | रवि तम सम सो संकट खोई ||
- बंदी परै सुमिरै हनुमाना | संकट कटे घरै जो ध्याना ||
- जाको बंध बामपद दीन्हा | मारुतसुत व्याकुल बहु कीन्हा ||
- सो भुजबल का कीन कृपाला | अच्छत तुम्हे मोर यह हाला ||
- आरत हरन नाम हनुमाना | सादर सुरपति कीन बखाना ||
- संकट रहै न एक रति को | ध्यान धरै हनुमान जती को ||
- धावहु देखि दीनता मोरी | कहौं पवनसुत जगकर जोरी ||
- कपिपति बेगि अनुग्रह करहु | आतुर आई दुसै दुःख हरहु ||
- राम सपथ मै तुमहि सुनाया | जवन गुहार लाग सिय जाया ||
- यश तुम्हार सकल जग जाना | भव बंधन भंजन हनुमाना ||
- यह बंधन कर केतिक वाता || नाम तुम्हार जगत सुखदाता ||
- करौ कृपा जय-जय जग स्वामी | बार अनेक नमामि-नमामी ||
- भौमवार कर होम विधना | धुप दीप नैवेद्द सूजाना ||
- मंगल दायक को लौ लावे | सुन नर मुनि वांछित फल पावें ||
- जयति-2 जय-जय जग स्वामी | समरथ पुरुष सुअंतरआमी ||
- अंजनि तनय नाम हनुमाना | सो तुलसी के प्राण समाना ||
।।दोहा।।
जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान।।
राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण।
।बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान।।
ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण।।
जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि।
रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि।।
।।सवैया।।
आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी।अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ।।
जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी । दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ।।